कुरुक्षेत्र के गांव पिंडारसी के प्रगतिशील किसान जोगिंद्र टपका सिंचाई से सब्जी की खेती कर अन्य किसानों को भी पानी बचाने की प्रेरणा दे रहे हैं। पिछले तीन साल से जोगिंद्र अपने एक एकड़ खेत में टपका सिंचाई से खेती कर रहे हैं। उन्होंने टपका सिंचाई से आलू, मटर और धान की सीधी बिजाई कर बेहतर पैदावार ली है। उसकी टपका सिंचाई से तैयार की गई फसल को देखने अन्य किसान भी उसके खेत में पहुंच रहे हैं। इससे खेती में खर्च कम और मुनाफा अच्छा हो रहा है।

पिछले कई सालों से जोगिंद्र ने परंपरागत गेहूं और धान की खेती से किनारा करना शुरू कर दिया था। इससे किनारा करते हुए उन्होंने सब्जी की खेती की शुरुआत की। इस काम में कामयाबी न मिलने पर जोगेंद्र ने कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ-साथ कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों से बातचीत की। कृषि विशेषज्ञों से सुझाव लेने के बाद उसने अपने खेत में एक एकड़ से सब्जी की खेती की शुरुआत की। इस खेती में गेहूं और धान की बजाय कम लागत पर ठीकठाक बचत होने पर जोगेंद्र ने पांच से छह एकड़ में सब्जी की खेती करनी शुरू कर दी। अभी उसने दो एकड़ में खीरे, एक एकड़ में टींडा, एक एकड़ में हरी मिर्च और पौना एकड़ में खरबूजे की फसल लगा रखी है।

टपका सिंचाई से लहलहाई आलू की फसल

जोगेंद्र ने जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि उत्तराखंड के पूर्व प्रो. डा. अशोक भारद्वाज निर्देशन में तीन साल पहले अपने एक एकड़ खेत में टपका सिंचाई से आलू की फसल की बिजाई की थी। टपका सिंचाई में खर्च कम होने पर भी पैदावार बेहतर रही। इसके बाद उसने इसी खेत में धान की सीधी बिजाई की। टपका सिंचाई से धान की पैदावार भी अच्छी निकली और इसमें पानी की 60 प्रतिशत के करीब बचत हुई।

परंपरागत खेती की बजाय नई विधि को अपनाना जरूरी

चौधरी चरण सिंह कृषि विवि हिसार के कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ संयोजक डा. प्रद्युम्मन भटनागर ने कहा कि परंपरागत खेती की बजाय किसान को खेती के वैज्ञानिक तरीके अपनाने होंगे। फसल पर लागत को करने से ही किसान की आय को बढ़ाया जा सकता है। गेहूं और धान की बजाय किसान दलहन और सब्जियों की खेती की ओर बढ़ना होगा।