Beware of global warming | Heat like May-June in the month of March & Rising sea level



कल्पना कीजिए कि अगर आपके शहर का तापमान अचानक से लगभग 40 डिग्री तक बढ़ जाए तो क्या होगा? जैसे.. मंगलवार को दिल्ली का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर गया. लेकिन सोचिए, अगर ये 80 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाए तो दिल्ली में कैसे हालात होंगे. यकीन मानिए ये स्थिति मौत से भी बदतर होगी. आपको 24 घंटे ऐसा लगेगा कि आप किसी जलते हुए तंदूर में बैठे हैं और इस स्थिति में कई लोगों की हीटस्ट्रोक की वजह से मौत हो जाएगी. अब इस कल्पना से बाहर आपको असली दुनिया में लाते हैं और ये बताते हैं कि जिस अंटार्कटिका को दुनिया का सबसे ठंडा इलाका माना जाता है, उस अंटार्कटिका में भी अब लू चल रही है. वहां तापमान सामान्य से लगभग 40 डिग्री ज्यादा पहुंच गया है.

अंटार्कटिका कर रहा बड़े संकट की तरफ इशारा

18 मार्च को अंटार्कटिका के Concordia (कॉनकॉर्डिया) Research Station में मायनस 12.2 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया, जिसे दुनियाभर के वैज्ञानिक चिंताजनक मान रहे हैं. दरअसल, मार्च के महीने में इस जगह पर सामान्य तापमान मायनस 50 डिग्री सेल्सियस रहता है. लेकिन इस बार ये मायनस 12.2 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया. यानी इस हिसाब से इस जगह का तापमान सामान्य से लगभग 40 डिग्री तक बढ़ गया. आम तौर पर तापमान में चार से पांच डिग्री सेल्सियस का अंतर दर्ज होता है और इसे भी खतरनाक माना जाता है. लेकिन 40 डिग्री सेल्सियस का अंतर एक बड़े संकट की तरफ इशारा करता है. अंटार्कटिका में जिस स्थान पर ठंड लोगों का खून जमा देती थी, अब वहां लोग शर्ट उतारकर तस्वीरें खिंचवा रहे हैं, जैसे वो अंटार्कटिका में नहीं, गोवा के किसी बीच पर हों. 

अंटार्कटिका में गर्म हवा और नमी की मात्रा बढ़ी

अंटार्कटिका का Concordia (कॉनकॉर्डिया) Research Station समुद्र तल से 3 हजार 234 मीटर की ऊंचाई पर है. इसकी शुरूआत वर्ष 2005 में फ्रांस और इटली ने की थी. इसके अलावा अंटार्कटिका के एक और रिसर्च स्टेशन Vostok (वोस्तोक) का तापमान 18 मार्च को मायनस 17.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो इन दिनों में मायनस 35 डिग्री के आसपास रहता है. यानी जिस अंटार्कटिका को अब तक दुनिया उसकी ठंड के लिए जानती थी, अब वहां भी लू चल रही है. वहां तापमान में असामान्य बदलाव देख जा रहे हैं. Vostok (वोस्तोक) वही जगह है, जहां रशिया का रिसर्च स्टेशन है. अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने अंटार्कटिका में पड़ रही इस गर्मी के लिए दो कारणों को वजह माना है. इनमें पहला है जलवायु परिवर्तन और दूसरा है, ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में बना एक उच्च दबाव का क्षेत्र, जिससे अंटार्कटिका के वातावरण में गर्म हवा और नमी की मात्रा बढ़ी है.

ये खतरा कोरोना वायरस से भी बड़ा

Satellite से ली गई तस्वीरें अंटार्कटिका के मौसम में आए इस बदलाव की भयावहता को बयां कर रही हैं. तस्वीर में ट्यूब जैसे आकार की चीज नजर आ रही है, वो एक बड़ा Ice Berg है. यानी बर्फ का एक विशाल पहाड़ है, जो अब टूट कर अलग हो गया है. इस Ice-Berg का क्षेत्रफल 1200 वर्ग किलोमीटर था. यानी ये क्षेत्रफल के मामले में इटली की राजधानी रोम, अमेरिका के Los Angeles शहर और भारत की राजधानी दिल्ली के लगभग बराबर था. लेकिन अब ये पहाड़ टूट कर अलग हो गया है. आपको लग सकता है कि अंटार्कटिका में पिघलते ग्लेशियर और बर्फ के पहाड़ से आपका क्या लेना देना. लेकिन ऐसा नहीं है. तेजी से पिघलते ग्लेशियर पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन को समाप्त भी कर सकते हैं. यानी ये खतरा कोरोना वायरस से भी बड़ा और गम्भीर है. जो बातें किताबों में लिखी जाती हैं कि दुनिया खत्म हो जाएगी, उसका एक कारण ये ग्लेशियर ही हो सकते हैं.

..पृथ्वी का तापमान करीब 60 डिग्री तक बढ़ जाएगा

अंटार्कटिका में दुनिया के पहाड़ों पर मौजूद सभी ग्लेशियरों की तुलना में 50 गुना अधिक बर्फ है और अगर ये ग्लेशियर पिघल गए तो इससे पृथ्वी का तापमान करीब 60 डिग्री तक बढ़ जाएगा. ये इतना ज्यादा होगा कि इंसान इस गर्मी को आसानी से नहीं झेल सकेगा. दूसरा परिणाम ये होगा कि इससे दुनिया में पीने का शुद्ध पानी खत्म हो जाएगा और इंसान पीने के पानी के लिए भी संघर्ष करने लगेगा और इसके कुछ वर्षों के बाद पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन पूरी तरह समाप्त हो जाएगा. यानी पृथ्वी का स्वस्थ होना भी उतना ही जरूरी है, जितना आपका स्वस्थ रहना आवश्यक है. पृथ्वी पर इस समय करीब 2 लाख ग्लेशियर हैं. ये प्राचीन काल से पृथ्वी पर बर्फ का एक विशाल भंडार बने हुए हैं. ऐसे में ग्लेशियरों के पिघलने से जमीन पर रहने वाले दुनिया के उन लोगों पर असर पड़ता है, जिनके लिए ग्लेशियर ही पानी का प्रमुख स्रोत है. जैसे हिमालय के ग्लेशियर आसपास की घाटियों में रहने वाले 25 करोड़ लोगों और उन नदियों को पानी देते हैं, जो आगे जा कर करीब 165 करोड़ लोगों के लिए भोजन, ऊर्जा और कमाई का जरिया बनती है.

समुद्र का जलस्तर 9 इंच बढ़ गया है

IPCC की रिपोर्ट में एक रिसर्च के हवाले से चेतावनी दी गई है कि एशिया के ऊंचे पर्वतों के ग्लेशियर अपनी एक तिहाई बर्फ को खो सकते हैं. ये स्थिति भी तब होगी जब इंसान ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने में कामयाब हो जाए और दुनिया के तापमान में इजाफे को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित कर दिया जाए. यानी दुनिया का बढ़ता यही तापमान Global Warming है. वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों जैसे मीथेन, कार्बन डाय ऑक्साइड, और क्लोरो-फ्लूरो-कार्बन के बढ़ने के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में होने वाली बढ़ोतरी को ही ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है. इसकी वजह से जलवायु परिवर्तन भी होता है. एक Study के मुताबिक वर्ष 1980 के बाद से समुद्र के जलस्तर में औसतन 9 इंच का अंतर आया है. यानी समुद्र का जलस्तर 9 इंच बढ़ गया है. इसकी बड़ी वजह Global Warming है, जिससे आइसबर्ग पिघलते हैं और फिर टूटकर समुद्र में गिर जाते हैं. अगर समुद्र का ये जलस्तर इसी तरह बढ़ता रहा तो अनुमान है कि अगले 60 वर्षों में मुम्बई, बेंगलूरु, और पश्चिमी भारत के कई समुद्री इलाके डूब जाएंगे.

मार्च में मई और जून वाली गर्मी

Potsdam Institute For Climate Impact Research का कहना है, 'पिछले 100 वर्षों में, दुनिया के समुद्र तल में 35 प्रतिशत इजाफा ग्लेशियरों के पिघलने की वजह से हुआ है.' ये सिलसिला अब भी जारी है. अनुमान है कि भविष्य में ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र तल का बढ़ना 30 से 50 सेंटीमीटर तक सीमित रहेगा क्योंकि अब इन ग्लेशियरों के पास कम ही बर्फ बची है. सरल शब्दों में कहें तो तेजी से पिघलते ग्लेशियर और टूटते Ice Shelf पृथ्वी के बिगड़ते स्वास्थ्य का एक बड़ा लक्षण है और इसके लिए जरूरी है कि दुनिया इस विषय को सिर्फ Seminar और गोष्ठियों तक सीमित ना रखे. क्योंकि गर्मी सिर्फ़ अंटार्कटिका में नहीं पड़ रही. बल्कि उत्तर भारत के भी कई इलाक़ों में इस समय तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया है. यानी महीना तो मार्च का चल रहा है. लेकिन गर्मी मई और जून वाली पड़ रही है.

सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन

देश की राजधानी दिल्ली में मंगलवार का दिन इस सीज़न का सबसे गर्म दिन रिकॉर्ड किया गया. दिल्ली में तापमान 39.1 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. जो सामान्य से सात डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा है. यानी इन दिनों में तापमान होना चाहिए 33 डिग्री सेल्सियस लेकिन ये 40 डिग्री के पास पहुंच गया है. कुछ इलाक़ों में तो तापमान 42 डिग्री सेल्सियस को भी टच कर चुका है. इसीलिए लोग पूछ रहे हैं कि दिल्ली का अभी ये हाल है तो मई और जून के महीने में क्या होगा? दिल्ली ही नहीं, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड और गुजरात में भी मार्च महीने में ही अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है. इस भीषण गर्मी का सबसे बड़ा कारण, जलवायु परिवर्तन ही है.

1 comment:

  1. We should rethink over our materialistic and greedy way of living which promotes more consumption hence less tree, less water more pollution and complete destruction.
    “The world has enough for everyone's need, but not enough for everyone's greed.”
    M.K. Gandhi

    ReplyDelete