यह पृथ्‍वी जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता के क्षरण तथा प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन जैसी प्रमुख समस्याओं से जूझ रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्‍वी का अस्तित्‍व ही खतरे में पड़ गया है। अगर समय रहते हम नहीं चेते तो यह धरती रहने लायक नहीं रहेगी। आज इस कड़ी में यह जानने की काशिश करेंगे कि जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण क्‍या है। इस जलवायु परिवर्तन का प्रकृति और मानव पर क्‍या असर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन का कृषि और मानव स्‍वास्‍थ्‍य पर क्‍या असर पड़ रहा है। इस सब मामले में विशेषज्ञों की क्‍या राय है।

1. ग्रीनमैन पर्यावरणविद विजयपाल बघेल का कहना है क‍ि 19वीं सदी में औद्योगिक क्रांति के बाद शहरों का आकार दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगा। गांव स‍िमटने लगे। रोजगार पाने के लिए गांवों की आबादी शहरों की तरफ पलायन कर रही है। आज हालात यह है कि देश में बड़े और प्रमुख महानगरों में उनकी क्षमता से अधिक आबादी निवास कर रही है। इसके चलते शहरों के संसाधनों का असीमित दोहन हो रहा है। उन्‍होंने कहा कि जैसे जैसे शहरों का विस्‍तार हो रहा है, वहां उपलब्‍ध भू-भाग दिन प्रतिदिन ऊंची-ऊंची इमारतों से ढंकता जा रहा है। शहरों की जल संवर्धन क्षमता कम हो गई है। बारिश के पानी से प्राप्‍त शीतलता में भी कमी आई है। इसका पर्यावरण तथा जलवायु पर प्रभाव पड़ रहा है।

2. पर्यावरणविद बघेल का कहना है कि जलवायु परिवर्तन में औद्योगिकीकरण की बड़ी भूमिका है। विभिन्न प्रकार के उद्योगों से वातावरण में सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रोजन डाइआक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड तथा अन्य जहरीली गैसें और धूलकण हवा में फैल रहे हैं। यह वायुमंडल में काफी वर्षों तक विद्यमान रहते हैं। इसका असर ग्रीन हाउस गैसों पर पड़ रहा है। इसके चलते ओजोन परत का क्षरण हो रहा है। इससे भूमंडलीय तापमान में वृद्धि हो रही है। उन्‍होंने जोर देकर कहा कि वायु, जल एवं भूमि प्रदूषण भी औद्योगिकीकरण की ही देन हैं।

3. उन्‍होंने कहा कि वनों की कटाई निरंतर जारी है। आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए वृक्षों की कटाई जारी है। आवास, खेती, लकड़ी की मांग के चलते वनों की अंधाधुंध कटाई जारी है। इससे धरती का हरति क्षेत्र तेजी से कम हो रहा है। इसका सीधा असर जलवायु परिवर्तन पर पड़ रहा है। उन्‍होंने कहा कि रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के अधिक इस्‍तेमाल से प‍िछले कुछ दशकों में रासायनिक उर्वरकों की मांग तेजी से बढ़ी है। उन्‍होंने कहा कि लोग यह जानकर हतप्रभ हो सकते हैं कि आज दुनिया में एक हजार से अधिक प्रकार के कीटनाशी उपलब्‍ध हैं। अधिक उपज के खातिर इसका इस्‍तेमात तेजी से बढ़ रहा है। इससे वायु, जल तथा भूमि में इनकी मात्रा भी बढ़ती जा रही है।

जलवायु परिवर्तन के क्‍या हैं खतरनाक प्रभाव

1. पर्यावरणविद बघेल का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया में मानसून का संतुलन बिगड़ गया है। इसके चलते मानसूनी क्षेत्रों में वर्षा में वृद्धि होगी। उन्‍होंने कहा कि इसके चलते भूमि अपरद जैसी समस्‍याएं पैदा हो रही हैं। पर्यावरणविद बघेल का कहना है कि इसके कारण पीने योग्‍य पानी की गुणवत्‍ता में कमी आ रही है। उन्‍होंने कहा जलवायु परिवर्तन का असर भारत पर भी दिखने लगा है। इसके कारण मध्‍य और उत्‍तरी भारत में कम वर्षा होगी। उन्‍होंने कहा कि पूर्वोत्‍तर तथा दक्षिण पश्चिमी राज्‍यों में अधिक वर्षा होगी। इसके चलते मध्‍य तथा उत्‍तरी भारत में सूखे जैसे हालात उत्‍पन्‍न होंगे, जबकि पूर्वोत्‍तर तथा दक्षिण पश्चिमी राज्‍यों में अधिक वर्षा के कारण बाढ़ जैसी समस्‍याएं उत्‍पन्‍न होंगी।

2. उन्‍होंने कहा कि इसका असर कृषि पैदावार पर भी पड़ेगा। अमेरिका में फसलों की उत्‍पादकता में भारी कमी देखने को मिल रही है। दूसरी तरफ उत्तरी तथा पूर्वी अफ्रीका, मध्य पूर्व देशों, भारत, पश्चिमी आस्ट्रेलिया तथा मैक्सिको में गर्मी तथा नमी के कारण फसलों की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होगी। वर्षा जल की उपलब्धता के आधार पर धान के क्षेत्रफल में वृद्धि होगी। भारत में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप गन्ना, मक्का, ज्वार, बाजरा तथा रागी जैसी फसलों की उत्पादकता दर में वृद्धि होगी, जबकि इसके विपरीत मुख्य फसलों जैसे गेहूं, धान तथा जौ की उपज में गिरावट दर्ज होगी।

3. पर्यावरणविद बघेल का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के ग्‍लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। यहअनुमान है कि ग्‍लेशियरों के पिघलने से औसत समुद्री जल स्‍तर 21वीं शताब्‍दी के अंत तक नौ सेंटीमीटर तक बढ़ने की संभावना है। इसका असर समुद्रतटीय देशों पर पड़ेगा। इसके चलते भारत के उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात और पश्चिम बंगाल राज्यों के तटीय क्षेत्र जलमग्नता के शिकार होंगे। परिणामस्वरूप आसपास के गावों व शहरों में दस करोड़ से भी अधिक लोग विस्थापित होंगे। समुद्र में जल स्तर की वृद्धि से भारत के लक्षद्वीप तथा अंडमान निकोबार द्वीपों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। समुद्र का जल स्तर बढ़ने से मीठे जल के स्रोत दूषित होंगे परिणामस्वरूप पीने के पानी की समस्या होगी।

4. उन्‍होंने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का सीधा असर है। इसका प्रभाव जैव विविधता पर भी पड़ रहा है। वातावरण में अचानक परिवर्तन से अनुकूलन के प्रभाव में कमी आई है, इससे कई प्रजातियां समाप्‍त हो रही हैं। जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक प्रभाव समुद्र की तटीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली दलदली क्षेत्र की वनस्पतियों पर पड़ेगा। यह समुद्री तटों को स्थिरता प्रदान करने के साथ-साथ समुद्री जीवों के प्रजनन का आदर्श स्थल भी होती हैं। जैव-विविधता क्षरण के परिणामस्वरूप पारिस्थितिक असंतुलन का खतरा बढ़ेगा।

5. उन्‍होंने कहा कि इसका असर मानव स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु में उष्णता के कारण श्वास तथा हृदय संबंधी बीमारियों में वृद्धि होगी। जलवायु परिवर्तन के चलते न सिर्फ रोगों में वृद्धि होगी, बल्कि इनकी नई प्रजातियों की भी उत्पत्ति होगी। इसके चलते फसलों की उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते एक बड़ी आबादी विस्थापित होगी जो पर्यावरणीय शरणार्थी कहलाएगी। इससे स्वास्थ्य संबंधी और भी समस्याएं पैदा होंगी।



After July 1st, disposable plastic products will no longer be permitted in the country. Earlier this year, the Central Pollution Control Board (CPCB)  notified manufacturers, shopkeepers, street vendors, and the general public about a ban on  items that the government considers to be disposable plastics. 

Disposable plastics, as the name implies, are  plastic products that are used only once before being disposed of. Such plastics are often not properly disposed of, or recycled. 

"Plastic disposable items-balloons, flags, candies, ice cream, plastic sticks for earplugs, decorative thermocols, plates, cups, glasses, cutlery and other items, candy boxes, invitations, cigarette boxes, stirrers, thick Plastic banners with a size of less than 100 microns  are banned from July 1st, "the notice said. Plastic bags with a thickness of  less than 120 microns will  be phased out from December 31st. 

Why  ban?  

Plastic waste is one of the leading causes of environmental pollution in the country. According to the center, India generated more than 34 lactones in 2019-20 and 30.59 lactones in plastic waste in 2018-19. 

The plastic does not decompose and  remains in the same landfill that had been buried  for thousands of years. At the same time, plastics emit toxic  and harmful gases during the process and cannot be burned. 

Material storage is the only viable solution other than recycling. Leaching of plastic waste into soil, water sources, etc. is associated with the presence of dangerous microplastics. By banning such plastic products, India can be expected to reduce the amount of plastic waste generated. 

Not a comprehensive measure 

The ban is a welcome measure for environmental protection, but the government needs other supportive measures to prove that the ban is  effective. Without  alternatives, users and manufacturers would have to rely on plastic. Loose enforcement of bans can also mean that the rules exist only  on paper and do not actually exist. 

States such as Himachal Pradesh and Maharashtra have enacted similar bans in the past, but the validity of the notification in the former case became apparent years later. In particular, industrial backlash from the FMCG industry will also be an important factor. In addition, according to the Federation of Indian Chambers of Commerce (FICCI), the plastics industry can face significant unemployment. For example, Delhi's draft environmental policy contains references to alternatives to disposable plastics.